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तुझ को छू कर ये सबा तेरी महक लाती है
गुदगुदाती है मेरी साँसें भी महकाती है
इस तबस्सुम के तलबगार कई हैं लेकिन
तेरे दीदार से चेहरे पे हँसी आती है
गुफ़्तगू तुझ से अगर यार कभी हो जाए
दिन महक जाता है और रात सँवर जाती है
नींद तो आती नहीं सर्द सी इन रातों में
याद तन्हाई मे क्यों ऐसे सितम ढाती है
चाँदनी चाँद के आगोश में जब इठलाए
जी जलाती है मुझे और भी तड़पाती है
सामने तेरे ज़ुबाँ दीप की खुलती ही नहीं
रात दिन तुझ से खयालात में बतियाती है
#दीप
#ग़ज़ल
#बातें मेरी तुम्हारी