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सोचा कितनी बार है दिल ने तुम पर भी इक गीत लिखूँ !
जग बिसरा के तुम को ही बस अपने मन का मीत लिखूँ !

जब ले कोई नाम तुम्हारा, अधरों पर मेरा आए,
राधा‌‌ कृष्णा के जैसी ही, मैं भी अपनी प्रीत लिखूँ !

ना हो मज़हब की दीवारें, न जाति-धर्म की बाधा हो,
प्रेम हो इक आज़ाद परिन्दा, ऐसी जग की रीत लिखूँ !

हृदय मोर-सा नाचे जिस पर इक धुन ऐसी छेडूँ मैं,
प्रिय बनो तुम राग अगर तो फिर मैं इक संगीत लिखूँ !

तुम बिन नश्वर सा है जीवन देह इक सूखा सा तरुवर,
वार के तुम पे सब अपना मैं हार भी अपनी जीत लिखूँ !

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