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कुछ रिवाजो से परे मैं
जब भी मिलूँगा प्रियतमा से
ना कहूंगा चाँद सी तू
ना कहूं , तुम रँगीन तारा
ना फूलो की सेज पर
उसे कोई गुलाब दूंगा
पहले रोज जब भी मिलूँगा
थाम कर मै उसके हाथ में
उसे एक क़िताब दूंगा
प्रेम क्या है वो खुद ही ढूंढे
साहित्य की कृतियों में
"गुनाहो का देवता" में
सुधा उसे बताएगी -
प्रेम का अर्थ पाना नही7
प्रेम तो उसका होने में है