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ग़ज़ल-256/2022,

वर्ष 2022 की ये आख़िरी ग़ज़ल है, इस वर्ष 256 ग़ज़लें ही कह सका, 109 ग़ज़लें कम पड़ गईं, इस वर्ष 365 ग़ज़लें मुक़म्मल न हो सकीं जबकि पिछले वर्ष 2021 में एक महीने पहले ही हो गई थी । जानता हूँ ये सब आँकड़े हैं मगर इससे एक अनुशासन बना रहता है, ख़ैर, आप सबका बहुत शुक्रिया जिन्होंने मेरी क़लम को अपना कीमती वक़्त और प्यार दिया, उनका भी शुक्रिया जो किसी वजह से जुड़ नहीं पाए मेरी ग़ज़ल से । एक शायर के लिए फूल से लेकर पत्थर तक की अहमियत होती है ।

नए वर्ष में कोशिश रहेगी कि अपने मुट्ठी भर ईमानदार पाठकों और शायरों को कुछ बेहतर पढ़ने को दे सकूँ और उम्मीद भी है कि बेहतर पढ़ने को भी मिले ।

दिल से जुड़ने के लिए आप सबका फिर से तह-ए-दिल से शुक्रिया , 💐💐💐😊 ख़ुश रहें, बेहतर लिखते-पढ़ते रहें 👍