8 Reads
जिंदगी की अज्जियत
सच्चाई छुपती नहीं कभी,इसलिए अभी ख़ामोश बैठा हूँ,
पैसों का खेल है जनाब,लुटा कर एकान्त संसार बैठा हूँ!
हर मोड़ पर पे धिक्कार कर,गुनहगार ठहराया गया हूँ
जो गुनाह किया नहीं कभी उसका कसूरवार बैठा हूँ!
मेरे गहरे ज़ख्मो का इलाज नहीं,लबों पे मुस्कुराये बैठा हूँ,
देता कोई साथ नहीं अंतिम तक,सदाबहार बन बैठा हूँ!
खुशियों की लहर गुंजती जहाँ,वीरानसीशांति लिए बैठा हूँ,
अपनों की बसती में, मैं गैरों की जिम्मेदारी लिए बैठा हूँ!
मेरे कल का कोई ठिकाना नहीं,मन मे इंतज़ार लिए बैठा हूँ
दिल में दफ़न है राज कितने,हाथों में अखबार लिए बैठा हूँ!
अपनों ने कि है बेवफ़ाई तो, जिंदगी जार जार कर बैठा हूँ,
चंद साँसे बची है उधार, उसका पहरदार लिए बैठा हूँ!
अपनों ने छोड़ा दामन तो,गैरों को रिश्तेदार बनाए बैठा हूँ,
अधेरनगरी जहाँ,हाथ में मशाल उम्मीद को उजाग़र बैठा हूँ!
मन में है कड़वाहट भरी ,मधुरता का संचार लिए बैठा हूँ,
ग़म की बदरी छाई जहाँ,वहाँबरसात की क़रार लिए बैठा हूँ!
हैवानियत की भेष लिए, पुण्य का हकदार लिए बैठा हूँ,
सीरत मे मलिनता भरी,होंठोपर राम का इकरार लिए बैठा हूँ!
जो समय हाथ से निकल गया,लौटने का इंतज़ार लिए बैठा हूँ,
मुख़ पर हीनता की भावना बेस ,उनसे इज़हार लिए बैठा हूँ!