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"बहुत खोए खोए से रहते हो आजकल? कोई बात है क्या?"
"नहीं। बस ज्यादातर वक्त खुद के साथ बिता रही"
"क्यों? औरों से दूर जाना है?"
"नहीं। बिल्कुल नहीं। हां पर खुद के करीब थोड़ा ज्यादा रहना है"
"तुम और तुम्हारी ये बातें, एक उलझी पहेली सी लगती हो। कभी लगता मानो सुलझ गई फिर कभी मुझे ही उलझा देती। कोई बात मन में है तो कह क्यों नहीं देते? आखिर तुम्हारा ये बोझिल मन किसकी राह देखता रहता है?"
"शायद तुम्हारे पूछने का!"
© ख़्याल
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