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सोचू तुम्हें दिन रात के मुकम्मल में...
सोचू तुम्हें हर रात के जुगुओ के बरसात में...
सोचू तुम्हें हर गीत के यौवन में...

सोचू तुम्हें हर सुबह के ओस के बूंदों में...
सोचू तुम्हें सावन के सोलह श्रुगार में...

सोचू तुम्हें में... मेरा दिन रात के हर तारों के रोशिनी में....

सोचू तुम्हें.... उन जुगुनू के शहर में......
एक टिमटिमाता हुआ प्रीत बनकर........
मेरे दिल पर राज़ करती हुई.....