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दूरियाँ बढ़ गई दोनों के बीच,तेरा प्यार कम ना हुआ,
कुछ देर मैं वही ठहरी थी पर, तेरा दीदार ना हुआ!
गलतफैमिया तुमने पाली,गुनाहों का इकरार ना हुआ,
तड़पती रही झूठी तोहमत ले पर कोई गवाह ना हुआ!
मैं दर्दो की आह में तन्हा घूट कर सिसकियाँ लेती रही,
पर रहमत का ख़ुदा बन कर,दर्दो का रहगुज़र ना हुआ!
ना जाने कैसी प्रीत की रीत लगाईं कान्हा ने,जोगन भी,
हुईं मीरा की तरह तो,कोई सारथी बन सहारा ना हुआ!
अब तो निर्झर बहती है अखियाँ से धार तेरे वियोग में,
अब दिल की पीड़ा तू ही ना समझ पाया तो क्या हुआ