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#दुनियाँ से ठुकराई हुई नारी हूँ, मिली इनाम में गुमनाम सी जिंदगी ,
सबने गंगा से पवित्र दामन में दाग लगाया, समर्पण से मिली बंदगी!!

किसी को उसकी चीखे ना सुनाई दी,लिख दी नसीब में तन्हाई,
शिद्दत से की एक से मोहब्बत,उसने भरी महफ़िल में की रुसवाई!!

मैं तरशती रही एक टूक सम्मान के लिए पर बुझी नहीं मेरी तीश्रगी,
दर्द मेरी तकदीर में लिखा,तन्हाई से भरे गहरे जख्मों से करी दिल्लगी!!

अपने दर्द को बाँट मन की पीड़ा बयां कर सकूं ऐसा कोई नहीं हमनशीं,
वक्त रहते लोग खंजर से वार करते,वाज़िब है मयस्सर ना हो मयकशी!!

घर की चार दीवारी में कैद रखते उनकी सपनों को अंधेरों तले महजबीं,
पल में हर रिश्तो को प्रेम से अपना बना लेती चाहे वह हो कितना अजनबी!!