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उस बेटी का क्या कसूर था ,
उसने तो उड़ाना चाहा था ,
बस वक्त पर आने पर मंजिल को ,
उसने तो छूना चाहा था ,
लोगों की सोच यूं घृणित हुई ,
बस उसको अपना माना था ,
एक पाने की खातिर उसने लूटी अस्मत ,
उसे अपनी आबरू बचाना था ,
ना छोड़ा है ना छोड़ेगा ,
यह नहीं पुराना जमाना था,
जिसको तुमने यूं नोचा है ,
वह एक चिराग परवाना था,
उसकी चिंगारी मे जलता ,
ये न्याय भी नया दीवाना था,
उसने तो अंतिम साँस मे भी ,
उस दर्द को भुलाया होगा,
जब उस गर्भ से तुझ जैसा,
एक जानवर बाहर आया होगा,
भगवान करे ऐसा ना हो फिर,
माँ की कोंख भरे ना फिर,
ऐसे को जन्म देने से बेहतर,
सुनी कोख रहे फिर भी ।