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मेरा जनम इसी वृत्ती के साथ हुआ हैं
के आप अपने कर्म कर सकते हो
सजग होकर।
अपने कर्म सुधार सकते हो
सहज होकर।
किंतु दूसरे के कर्म नहीं..
दूसरे को उनके कर्तव्य और धर्म का एहसास नहीं करा सकते आप..
जब तक वह ख़ुद इसके लिए राज़ी नहीं।
इसीलिए महज़ अपना कर्म करो।
अपना कर्तव्य निभाओ
अपना धर्म दायित्व निभाओ..
किंतु जिस इंसान को आपकी माँ की परवाह नहीं,
उस इंसान को आपका दर्द आपकी तकलीफ़ जानने का भी अधिकार नहीं।
और यही उनकी सज़ा हैं।
के वो कभी न जान पाए आपकी तकलीफ़ को।

12.14am
3.9.2024