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घरेलू उत्पीड़न झेल रही नारी की आह को क्या समझोगे ,
जिसका ना अपना ना इस संसार में कोई है ।
( यही इस छोटी पंक्ति में बताने की मेरी नाकाम कोशिश है पर उनका दर्द इससे कहीं बड़ा और चाहकर कर भी हम समझ सके ये नामुमकिन है।)
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घरेलू उत्पीड़न झेल रही नारी की आह को क्या समझोगे ,
जिसका ना अपना ना इस संसार में कोई है ।
( यही इस छोटी पंक्ति में बताने की मेरी नाकाम कोशिश है पर उनका दर्द इससे कहीं बड़ा और चाहकर कर भी हम समझ सके ये नामुमकिन है।)