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कारगिल विजय दिवस
मैं चलता हूँ, नहीं रूकता हूँ।
मैं घाव लिए भी आगे बढ़ सकता हूँ।
दुश़्मन के आगे नहीं झुकता मैं,
चोटिल भी पहाड़ चढ़ सकता हूँ।
इस माटी की खातिर कुछ भी कर सकता हूँ,
देश की खातिर सौ बार जान न्योछावर कर सकता हूँ।
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