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नभ ने बंद की पलक छाया अंधेरा,
पलट पंखुरी पुष्प ने भी मुख फेरा;
नभ से पंछी लौट आए रैन- बसेरा,
चुपके ख़ामोशी ने मन मोरा घेरा।

पवन पावणी ले आई स्मृति मेला,
मन मौन मगर क्षण नहीं अकेला;
नयन तरनी बह चला अश्रु रेला,
समय ने करवट लेकर खेल खेला।