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खुद को खो देने की "पीड़ा" से जूझ रहा है अंतर्मन
मन की व्यथा सुनाऊं किसको, भीगा रहा अश्रु दामन
एक मन कहता है हस लूं, सब कुछ छोड़ के भूलू मैं भी
एक मन कहे न भूल इसे, ये पीड़ा भी है एक बंधन
क्या हुक्म आप का है मिरे वास्ते हुज़ूर,
जारी सफ़र रखूँ कि ठहर जाऊँ क्या करूँ...
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