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ज़ेहने हसीन थी और फूल चुन कर लाती थी,
मैं शेर कहता था, वो दास्तां सुनती थी।
उसे मालूम था की मैं दुनिया नहीं मोहब्बत हूँ, वो मुझसे कुछ भी नहीं छुपाती थी।
यह फूल देख रहे हो यह उसका लहजा,
यह झील देख रहे हो यहाँ वो अति थी।
और.....
मुनफिकों को मेरा नाम ज़हर लगता था,
वो जान बुझ कर गुस्सा उन्हे दिलाती थी।
और......
उसे किसी से मोहब्बत थी,
पर वो मैं नहीं था.....
यह बात मुझे ज़्यादा उस रुलाती थी।
❤🌼🥺
~ali zayaron