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वो मीरा के मासूम सवाल उनके दादा जी को किये गए;
" बाबो सा, एक बेटी के कितने बिंद होते है ??"
" क्या मन का बिंद, तन का बिंद अलग हो सकता है?? "
" मैं क्यों मन के बिंद को और तन के बिंद को अलग स्वीकार करू?? "
ये जैसे छोटी सी मीरा ने क्रांति कर दी एसे थे !! इतनी मासुमियत में भी मीरा वो समझ चुकी थी, जो आज खुद को परीपक्व कहता समाज कभी ना समझ पाएगा !!
मीरा को तो समझने वाले उनकें दादाजी थे, उनके जीते जी मीरा का कोई विवाह नहीं कर पाया था! उनके जाते ही इस समाज की सोचने मीरा का मन पढ़े बिना ही बंधनों में जकड़ दिया! स्त्री की हालत आज भी वही है, जो उस वक्त थी ! न जाने आज भी कितनी स्त्रियाँ बिना मन के बिहाइ जाती होगी! मीरा के तारक तो स्वयम् परमेश्वर थे! पर शायद इश्वर भी आज की स्त्री को इतना आधुनिक समझकर उसकी मदद के लिए नहीं आता होगा! !नहीं वैसे वो तो विश्व के स्वामी है, उनकी नजरों से किसी भी स्त्री का मन न पढ़ा जाए एसा हो नहीं सकता! पर फिर भी सवाल यही उठता है की अगर वो सबके मन को पढ़ते है फिर भी कुछ स्त्रियाँ क्यों मुक्त नहीं रह पाती?? क्यों उनके निश्चल मन को बेवजह बंधन मे कैद कर दिया जाता है! क्या ये पाप नहीं??
सच में मीरा से बड़ा क्रांतिकारी कोई नहीं!!
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