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सत्य के मार्ग सदा क्यूँ न दिखाये जाये
दीप आगार में रोगन के जलाये जाये
बैर कोई न करे दूर करे घृणा को
गीत भी स्नेहिल हे प्रीतम गाये जाये
भूख बेचैन किये है सब बच्चों को ही
मूरती पे गुल पुष्पाण्ड चढ़ाये जाये
व्यर्थ चर्चा करते शोर मचाते सारे
मामले संसद में तो न उठाये जाये
माफ़ है ख़ून सभी के जुड़ते उनसे जो
साध है साहब के हाथ नवाज़े जाये
जितेंद्र नाथ श्रीवास्तव "जीत "