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#ग़ज़ल
उलझनें उलझा रहीं हैं फिर मुझे
ये कहाँ ले जा रहीं हैं फिर मुझे
सालती यादें ,हुआ दिल खोखला
दीमकें ही खा रहीं हैं फिर मुझे
कर लिया क़िस्मत से समझौता मगर
ख्वाहिशें तड़पा रहीं हैं फिर मुझे
अब्र खुशियों के कहीं से ला दो ना
मुश्किलें झुलसा रहीं हैं फिर मुझे
#दीप
"हार कर रुकना नहीं चलती रहो"
मंज़िलें उकसा रहीं हैं फिर मुझे