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काश तुम मुझे तब मिल जाते
जब मैं मिलना चाहता था तो
वहीं पकड़ के तुमको..
दो-चार ..
कविता सुना देते ।
उससे भी न मानते अगर,
वहीं जकड़ के तुमपर
चार- पाँच
शायरियों की लाइने मार देते।
दिमाग़ चकरा न जाता तो कहते
वहीं अकड़ के सामने तुम्हारे
एक बड़ी..सी
गज़लों की चादर बिछा देते।
और...
उस चादर पे तुम्हे बिठा कर
सारी बीती मुजबानी सुना देते।
वहीं उखाड़ के परत दर परत,
एक एक करके सारे पर्दे उठा देते।।
हट जाता सारा दिमाग से जो जाला पड़ा था।
तुम भी याद करते किस कवि से पाला पड़ा था।
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