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जब ज़रूरत हमें पड़ी उनकी
तब ही दरवाज़े उनके बन्द मिले

फ़ासले बढ़ रहे हैं अब ज़्यादा
अब न तेरी मेरी पसन्द मिले

राह में तीरगी मिली गहरी
दीप उम्मीद के भी मन्द मिले

सदियाँ बीतीं उन्हें बने फ़िर भी
वो पुराने क़िले बुलन्द मिले

बाद मरने के उसके कमरे में
कुछ ग़ज़ल, शेर और छन्द मिले

दाम सोने का बढ़ता जाए है
हार सोचो तो बाजूबन्द मिले

भोग छप्पन मिले न सीता को
भाग्य में जो लिखे थे कन्द मिले

ज़ीस्त को क्या जवाब दे ये 'शशि'
न सवालात मन पसन्द मिले

#ghazal12
#shashiseesnsays
#shayari