...

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समय, छल करता है,
इसकी गति बढ़ जाती है,
तेज़ हो जाता है ये,
बाकी तो, यूँ धीमे-धीमे ही निकलता है,
मैं जब भी तुम्हें सोचता हूँ,
इसका कपट सामने आ जाता है।
© ✒ @poetryhub4u