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ख़यालों में मेरे तू ही बसा है
मुहब्बत ये नहीं तो और क्या है
तबस्सुम नाचती मेरे लबों पर
तसव्वुर में मुझे जब तू मिला है
मुझे अक्सर यूँ ही मदहोश करतीं
तेरी बातों में कोई तो नशा है
समंदर की हो दूरी दरमियाँ जब
किनारा क़ब किनारे से मिला है
भले मुश्किल है मिलना रु-ब-रु पर
दिलों में तो नहीं कुछ फासला है
मैं सुन सकती हूँ तेरे दिल की धड़कन
मेरे पहलू में ही शायद बसा है
जुड़े हैं रूह से हम 'दीप' देखो
मुकम्मल इश्क़ इसको ही कहा है
#दीप
#ग़ज़ल
#बातें मेरी तुम्हारी
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