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प्रकृति आज कुछ इस मजाज मे हैं
बैठी हैं वो उन राहो को तक ते हुए
जिसमें मौसम बसंत बाहर के थे,
उसके गेशु जो आज खुले हुए, काले बादल
हैं, दिन -दोपहर मे आधी रात सी लगे
उसके तन के कपड़े फूल-पत्तों से सजे
आँखो से एक बूंद जो गीरे, बादल फटने लगे
कैसे अनमाँई सी बैठी कि दीन भी आधी रात सी लगे, करवट बदल कर बैठ गयी, तेज हवा चलने लगे , गेशु उसके काली घाटा बन उड़ने लगे , गेशु मे लगे मोती, पानी बन बरसने लगे .