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इंसानियत शर्मसार है

गिरकर पाताल तक, तू मानवता की नज़र में…
कब तक नारी के "मान" का, यूं तिरस्कार करेगा…
इंसानियत शर्मसार है
वीभत्सता से रौंदा हैं, जिस "पुष्प" अबोध को …...