मनःभाव
मैं टूटा तो,
तुम भी चले गये,
फिर संभालेगा कौन ?
आज कोई नहीं अपना,
कल भी न कोई होगा,
फिर अंगुली पकड़ेगा कौन ?
मैं ख़ामोश,
सारे जहां संग तू भी ख़ामोश,
फिर हृदय की ख़ामोशी तोडे़गा कौन ?
कही सुनी बातें को,
देते रहोगे तवज़्जों,
तो हृदय से प्रीत निभायेगा कौन ?
बेज़ान तो मैं हूँ,
फिर तुम क्यों पाषाण हो रही?
सोचो ज़रा जीवन देगा कौन ?
मैं...
तुम भी चले गये,
फिर संभालेगा कौन ?
आज कोई नहीं अपना,
कल भी न कोई होगा,
फिर अंगुली पकड़ेगा कौन ?
मैं ख़ामोश,
सारे जहां संग तू भी ख़ामोश,
फिर हृदय की ख़ामोशी तोडे़गा कौन ?
कही सुनी बातें को,
देते रहोगे तवज़्जों,
तो हृदय से प्रीत निभायेगा कौन ?
बेज़ान तो मैं हूँ,
फिर तुम क्यों पाषाण हो रही?
सोचो ज़रा जीवन देगा कौन ?
मैं...