...

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बदलते रिश्ते
चोट मौसम ने दी कुछ इस तरह गहरी हमको।
अब तो हर सुबह भी लगती है दुपहरी हमको।।

काम करते नहीं बच्चे भी बिना रिश्वत के।
अपना घर लगने लगा अब तो कचहरी हमको।।

अब तो बहिनें भी ग़रीबी में हमें भूल गईं।
राखियाँ कौन भला भेजे...