कृष्ण स्वप्न
|| कृष्ण स्वप्न ||
नहीं भूल पाऊंगी मैं वह शाम ,
जिसमें गिरधर का ले रही थी मैं नाम |
अचानक जाने कैसा चमत्कार हो गया,
मेरा कुछ क्षण के लिए मानो सोया हुआ भाग्य ही खुल गया |
चारों तरफ अंधेरी रात छा गयी,
तभी एक तेज रोशनी आई ;
जिससे मैं उस अनंत सुख को पा गयी ,
शब्दों में नहीं बयां कर सकती मैं उसके बाद के सुखद अहसास को ,
वह पल था मानों जैसे मैंने जी लिया हो रास को |
क्योंकि कान्हा के हाथ को अपने माथे पर मैं महसूस कर पा रही थी ,
मेरी आत्मा ...