...

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कृष्ण स्वप्न

|| कृष्ण स्वप्न ||

नहीं भूल पाऊंगी मैं वह शाम ,
जिसमें गिरधर का ले रही थी मैं नाम |
अचानक जाने कैसा चमत्कार हो गया,
मेरा कुछ क्षण के लिए मानो सोया हुआ भाग्य ही खुल गया |
चारों तरफ अंधेरी रात छा गयी,
तभी एक तेज रोशनी आई ;
जिससे मैं उस अनंत सुख को पा गयी ,
शब्दों में नहीं बयां कर सकती मैं उसके बाद के सुखद अहसास को ,
वह पल था मानों जैसे मैंने जी लिया हो रास को |
क्योंकि कान्हा के हाथ को अपने माथे पर मैं महसूस कर पा रही थी ,
मेरी आत्मा मानो कृष्ण में समाय जा रही थी |
फिर कान्हा ने मेरे हाथ को प्यार से छुआ ,
मानो लग रहा था जैसे दे रहे हो मुझे वह अपने प्रेम की दुआ |
उसके बाद मेरे पैरों से उन्होंने अपने पैर मिलाएं बड़े प्यार से ,
लग रहा था जैसे मिल रही थी मैं उस क्षण अपने गिरधर के दुलार से |
इतना सारा कृष्ण प्रेम को मैंने देखा पहली बार था,
डर गई थी उस पल मैं क्योंकि मेरे लिए वह सब एक अनोखा सार था |
समझ नहीं पा रही थी मैं कि यह क्या हो रहा है साथ मेरे,
डर के मारे छोड़ दिया वह सपना जिसमें थी मैं नाथ ! साथ तेरे |
दुख अभी भी है मुझे उस अधूरे सपने का ,
दोबारा जीना चाहती हूं उस पल को मैं जिसमें एहसास था मेरे किसी अपने का ||

~ राधिका





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The sound of the stadium's roar,
Resonates with every four,
Down the pitch,
Over the arm,
Cricket has its own charm