...

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मेरे अंदर एक.......!!!
मेरे अंदर एक लहर उठ रही हैँ
कहीं खुदको लेजाने की एक चहक उठ रही हैँ,

चेहरे पर यूँ कमसिन सी उदासी दिख रही हैँ
दूर जाता कुछ मुझसे मेरी ख़ुशी दिख रही हैँ,

मैं कहीं उसी दूर चबूतरे पर बैठी हूँ
मेरी रूह उसी कफंस मेँ कैद यादों के दिख रही हैँ,

मैं कलम की आड़ मैं जज़्ज़बातों को लिखती दिख रही हूँ
मेरी तन्हाई प्रफुल्लित हो बातों को याद करती दिख रही हैँ,

आँख बंद कर कई माजी के गीले शिकवे भुलाये दिए मैंने मिलूं उनसे दोबारा कभी नज़दीक आने को मेरे दिख रहे हैँ,

इस वक्त का इंतज़ार बरसों से था
आज उस शहर छोड़ जाने मैं सब यादें जाती दिख रही हैँ,

शिवानी यादव(शिवि)✍️