...

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"माँ "की झुर्रिया....
आज अनायास ही माँ के चेहरे की झुर्रिया पढ़ने का मन किया,
किसी में मेरी फ़िक्र की शिकन थी,
किसी में पापा के सेहत की चिंता,
कुछ लकीरें घर गृहस्थी में सिकुड़ी मिली,
कुछ रसोई के मसालो के डिब्बे में उलझी मिली,
उनकी झुर्रियो की हर लकीर में,
उनकी पूरी उम्र का लेखा जोखा था,
कपड़ो के रख रखाव के सलीके की लकीरें,
दीवारों पर लगे जाले साफ करने की जल्दी,
पूजा की घंटी, चालीसा की रटन,
दूध की मलाई से,निकाले घी की विजय प्राप्ति,
मेरे घर से बाहर निकलने पर पीछे की आवाज़ "बेटा जल्दी घर आ जाना "
पापा के घर आने के समय से आगे निकलती घड़ी की सुई से,
अपनी चिंता जताती लकीरें,
घर में किसी के बीमार होने पर
नज़र उतारती लकीरें,
कभी मांगी मंनौती के पूरे होने पर,
रखे व्रत की लकीरें
आज माँ के चेहरे की झुर्रिया,
उनकी पूरी उम्र का हिसाब किताब दे रही थी,
मैंने माँ को फिर देखा,
एक डर मेरे मन के दरवाज़े पर,
जोर जोर से दस्तक देने लगा,
"माँ "के बिना.....
आँखों में गीलापन शुरू हुआ और नियति से शिकायतों का दौर...