...

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हम दोनों
क्या लिखूं अब,
कलम की स्याही फीकी सी है,
मन का दर्पण धुंधला गया है,
जिंदगी की धूप छांव में
मेरा सूरज भी लुका छुपी खेल रहा है!

हां सच ही तो है,
तू है भी और नहीं भी;
किसी शातिर जुआरी सी,
दुनिया की चालें सीख ली तुने!

घने बादलों के बीच
सूरज की मुस्काती किरण सी तू ;
सुन जरा ए जिंदगी
मैं भी जिद्दी हूं,
और धूप छांव के इस खेल में
अंत तक तेरे साथ चलूंगा,
कभी हंसते कभी रोते
कभी गाते गुनगुनाते:
हम दोनों साथ चलेंगे,
पृथ्वी के अंतिम छोर तक
डूबते सूरज की आखिरी किरण तक;
फिर एक नए उजाले पर सवार होंगे
हम साथ चलेंगे!

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