...

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महिला दिवस
लिख रही हूँ आज कलम की जुबानी
स्त्री के जज़्बात औऱ स्त्री की कहानी

जकड़ी गई वो रिवाज़ की जंज़ीरो मे
कही चल ना सकी उसकी मनमानी

घुट-घुट कर करती रहीं जीवन व्यतीत
ना जाने कैसे चलाई सासो की रवानी

नाहक पर ज़ब उठानी चाही आवाज़
मिटानी चाही सब ने उसकी निशानी

क्यों नही समझते है कोई उसकी वफ़ा
लुटा देती है परिवार पे अपनी जवानी

जीवन रहता है उसका संघर्षो से भरा
सामना करती है उसका वो मरदानी

नज़रो से करती है वो खुद की रक्षा
बचाती है रोज़ वो इज़्ज़त खानदानी

स्त्री गर्भ से ही उत्पन्न हुए वीर यहाँ
बात उसके मन की किसीने ना जानी

कोई नहीं...