...

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शायद तुम रुक जाते
सोचा था कि,
जाने से पहले एक बार मिलकर जाते,
रुक कर थोड़ा मेरा ठिकाना देख जाते,
ये नम आँखें कुछ बातें बताती तो,
शायद उन्हें पढ़ कर रुक जाते।

बिस्तरों पर पड़ी सर्वटे,
सिरहाने रखी तकिया,
ये अंधेरा मेरे कमरे का,
बिखरी जुल्फें मेरी,
ये सूजी आँखें मेरी,
कहते-कहते यू सांस का भर आना,
शायद मेरा हाल यू देखते,
तो जाने की बातें ना करते,
तो शायद तुम रुक...