...

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दीवाने गुज़र गए...
चाहे तेरी याद के सिरहाने गुजर गए।
देखो, बिना तुम्हारे जमाने गुजर गए।

तेरे बाद मेरी नजर ठहरी नहीं कहीं।
मेरी राहों से ढेरों, खज़ाने गुजर गए।

जब भूख ने सताया, निकले रोटी की तलाश में।
पीछे से वो गिल्ली डंडों वाले, ज़माने गुज़र गए।

दर्दे दिल था ही नहीं, तब शायरी बेज़ान थी।
गज़ल ने आँखें खोली तो,हम खुद गुजर गए।

उसकी गली की ख़ामोशी मुझको डरा गई।
शायद शमां बुझ गई, या दीवाने गुज़र गए।

तुमने जाते वक्त कहा था, लौट कर ना आऊंगा।
क्यों ख़्वाबों की गलियों से रोजाना गुजर गए।

आँखों से अश्क बन कर कुछ यूं उठा कि फिर।
उस गम के बवंडर में सारे ठिकाने गुज़र गए।

जिस रस्ते पर छोड़ा था, दरख्त से खड़े हैं हम।
मौसम तो नए भी गुजरेंगे, जब पुराने गुजर गए।
© छगन सिंह जेरठी
© छगन सिंह जेरठी