...

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नई कोंपले
तुम कुछ बड़ी बात छुपा रहे हो,
क्यूँ तपन से खुद को झुलसा रहे हो।
बिखरने दो इस तपन को क्यूँ इसे दबा रही हो,
दुखों को जीवन की एक अलग राह चुनने दो।
तपिश के साथ जीवन मे विचारों की बारिश होने दो,
बारिश की बूंदों को तुम्हे पूर्ण रूप से भिगोने दो।
नित नई कोंपले खुलने दो,कलियों को पुष्प बनने दो।
तितली भौरों को खुद पर मंडराने दो,
नए जीवन का बीज अपने भीतर पनपने दो।
फिर आएंगी बहारें इस जीवन मे,
फिर होगीं खुशियां घर आंगन में।
संजीव बल्लाल १/५/२०२३© BALLAL S