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ललक"सचिन तेंदुलकर"
सुनो जनो एक बात बताऊं ,
एक महानुभव की जीवनी सुनाऊं ।
जो खेल का मनोहारी है और ,
क्रिकेट से उसकी वफादारी है ।

था छोटा-सा वो पर स्वप्न बड़े से देखे थे, उसे पाने को उसे,
त्याग बड़े ही करने थे ।
बचपन में ही छोड़ दिया ,
त्याग दिया घर का उसने प्यार,
मां प्रेम था और पिता की पुकार।

लक्ष्य उसके पुकार रहे थे ,
थे दृढ़ संकल्प समर्पण उसके ।
इंद्रियों पर उसने काबू पाया और
अग्रसर रहे कदम उसके।

गुरु के सिख को उसने ,
जीवन दर्शन बना डाला ।
पथ प्रदर्शक की सुनी बातें ,
घमंड को ना कभी उसने पाला ।

आलोचना से प्रेरणा पाई और
थी ललक कुछ करने की।
हार कर भी जीतता था,
क्योंकि थी ललक कुछ सीखने की।

एक घटना उसकी सुना रहा :
बात है 1998 की ,
शारजाह स्थान था वह और
खास था सचिन की पारी भी।
मैच से पूर्व आ चुका था
एक रेतीला तूफान।
खेल बाधित हो चुके थे ,
#कोका कोला कप# था परेशान ।

पर प्रभु की कृपा थी और
वायु देव शांत हो चुके थे।
मैच शीघ्र ही आरंभ हुआ और
अपनी पारियां सब खेल चुके थे।

अब बारी थी उस तूफान की ,
जो शांत -सा बह रहा था ।
ज्यो ही मैदान में वो खड़ा हुआ,
एक अलग तूफान अब बह रहा था।

गेंदबाजों की गेंद को ,
वह किस तरह उड़ा रहा था।
पारियां उसकी "स्टॉर्म" थी ,
#डिजर्ट स्टॉर्म# शॉर्ट वह मार रहा था।
© श्रीहरि