...

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डूब
कुछ बीतता हुआ सा महसूस हो रहा है..
वक्त मुझमें बीत रहा है
या मैं वक्त में
या शायद हम दोनों ही
एक दूसरे में...

वक्त के समंदर में मानो
जो कंकड़ फेंके जा रहे हैं
वो मैं हूं!
या उनके आस पास उठ रहीं
पानी की छोटी छोटी लहरें मैं हूं
जो चल रही हैं,
फिर भी रुका हुआ है
पानी अपनी ही जगह
कांपता हुआ...
कभी महसूस होता है
पानी पर खींची उन लकीरों-सा!

ये समंदर मेरा अक्स है या आइना?

जितना डूबती जा रही
उतना ही महसूस हो रहा
ऊपर उठते जाना...
या मैं आसमां में ही डूबती जा रही हूं!

या होती जा रही हूं
खुद ही आइना..
आसमां और समंदर
दोनों डूब रहे हैं मुझमें...


© आद्या