...

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मेरी अधूरी मोहब्बत...
एक सपना ही था शायद जो ऐसे टूट गया
सब कुछ कहकर भी सब अनकहा सा रह गया
मुकम्मल होना ही नहीं था शायद मुकद्दर इसका
मेरी अधूरी मोहब्बत का वक़्त गवाह हो गया....

हर पल में ना जाने कितना संजोया
उसको नहीं पता मैं कितना हु रोया
हर लम्हा मैंने हस्ता चेहरा ही था सजाया
मुकम्मल होना ही नहीं था शायद मुकद्दर इसका मेरी अधूरी मोहब्बत का वक़्त गवाह हो गया...

रातों को सोना भी जैसे मुश्किल हो गया
आंखों से नींदों का जैसे रिश्ता खो गया
ख्वाब भी अगर आते हैं तो डर ने अपनाया
मुकम्मल होना ही नहीं था शायद मुकद्दर इसका
मेरी अधूरी मोहब्बत का वक़्त गवाह हो गया...


उम्मीद आज भी है काश कुछ ऐसा होगा
खुदा कभी तो मुझपर मेहरबां होगा
खो दिया है जिसको दुनिया की इस भीड़ में
एक दिन उसको भी मुझसे प्यार होगा
मुकम्मल भी होगा तब शायद ममुकद्दर इसका
तब मेरी मोहब्बत का ये वक़्त ही गवाह होगा....


ना जाने वह दिन कैसा होगा.....

-AEZZ खान...
© AEZZ खान...