उलझने ज़िन्दगी की ......
ये ज़िन्दगी आखिर समझ क्यों नही आती....
खिलौनों से खेल के बड़े होते
बड़े होकर खुद खिलौना बन जाते....
अनजाने में खुद ही बर्बाद किया खुद को
जब टूटे सपने तो कारण समझ नही पाते ...
नादानी थी तो ठोकर से घर को सिर पे उठाया......
आज तूफान उठा है फिर भी होठो पर मुस्कुराहट ही दिखाया.....
दिल दिमाग का गणित समझ ही नही पाता..
जो है नही हमारा वही दिल को क्यों भाता...
खुश थी कल भी शायद खुश हूं आज भी
पर इस शायद का माजरा समझ नही आता.
हैरान होती हूँ कि मैं वह...
खिलौनों से खेल के बड़े होते
बड़े होकर खुद खिलौना बन जाते....
अनजाने में खुद ही बर्बाद किया खुद को
जब टूटे सपने तो कारण समझ नही पाते ...
नादानी थी तो ठोकर से घर को सिर पे उठाया......
आज तूफान उठा है फिर भी होठो पर मुस्कुराहट ही दिखाया.....
दिल दिमाग का गणित समझ ही नही पाता..
जो है नही हमारा वही दिल को क्यों भाता...
खुश थी कल भी शायद खुश हूं आज भी
पर इस शायद का माजरा समझ नही आता.
हैरान होती हूँ कि मैं वह...