...

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दिल की दास्ताँ:मोहब्बत और धोखा
मज़हब की दीवार थी बीच मे ,
फिर भी मैने मोहब्बत करी ।
था जंग का इल्म मुझे ,
फिर भी मैने शिद्दत से करी ।
3 साल का इश्क वो नाकाम हो गया ,
अचानक मेरी मोहब्बत का नाम बदनाम हो गया ।
जनती हू ,
मज़हब अलग हो तो इश्क किया नहीं जाता ।
और मैं ये भी जनती हू ,
इश्क हो जाए तो धोखा दिया नहीं जाता ।
14 बरस की उम्र थी ,
दिल उसके नाम कर दिया ।
उसने मेरा नाम सारे जहां मे बदनाम कर दिया ,
जो माँगा उसने ,
उसे दे दिया ।
उसके हवस की आग ना भुज पाई पर ,
इज्ज़त पर मेरी
ऐसा दाग लगाया था उसने
खुदा की कसम खा के भी
10 औरतों को हाथ लगाया था उसने।
मेरा खुदा जानता है ,
तेरी हवसी नियत को ।
तू खुद को सही केसे बताएगा?
अपने गुनाह से तो तू भी वाकिफ़ है ,
कयामत के दिन भी तू दोषी पाया जाएगा ।
है हिम्मत तो कर स्वीकार ,
तूने डाला था मेरी इज्ज़त पर हाथ ,
आ सरे आम और कर एलान ।
गुनाह तो मेरा भी था,
मैने इज़हार ए इश्क किया ।
तूने तो सिर्फ अपनाया था
मैने मोहब्बत करी ,
तूने तो सिर्फ शिद्दत को दफ़नाया था ।
मैने आँख मूँद जो करा भरोसा,
तूने अंधा समझ लिया ।
मेंने दिल थाम ,
जो करी माफ़ बेवफाई तेरी ,
तूने पागल समझ लिया ।
मेरे जिस्म को जिस कदर तूने नापा था,
तेरे गुनाह उस कदर नापे जा रहे थे।
तेरा जो नापाक दिल है ना,
वो कयामत के दिन झुलसेगा।
मेरी जान फिर देख लेना ,
जिस तरह मैं तरसी हू ,
तू उस कदर तर सेगा।
मैं नाम ना लुंगी उसके मज़हब का ,
ये सही नहीं होगा ।
हो हर इंसान उसका गलत ,
ज़ाहिर है ये किसी को मंज़ूर नहीं होगा।
ना नाम लुंगी तेरा ,
ना तुझे बदनाम करुँगी ।
मेरी जान आखिर शायर हू ,
हर किस्से को ,
हर काग़ज पर ,
खून के कतरे से लिखूँगी ।
© SAARA