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/जिंदगी एक ग़ज़ल /बह्र : २१२ २१२ २१२ २१२
212 212 212 212
है हक़ीक़त ज़मीनी बताती ग़ज़ल
हम को जीने का मतलब सिखाती ग़ज़ल

काश हम वैसे रिश्ते निभाने लगें
रब्त को जिस तरह से निभाती ग़ज़ल

ये नहीं गुफ्तगू सिर्फ महबूब से
अब तो माँ पे भी है लिक्खी जाती ग़ज़ल

जिसके बिन है ये जीवन मुकम्मल नहीं
हमसफ़र क़ाफिया है बताती ग़ज़ल

है 'उला अर्श सानी है गर्दिश यहाँ
दोनों पहलू से हमको मिलाती ग़ज़ल

मतला' जीवन है ' आदित्य ' मक़्ता मरण
ज़ीस्त का फ़लसफ़ा ये दिखाती ग़ज़ल

© आदित्य तिवारी