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"पिता – छांव एक घर की "
पिता – छांव एक घर की!!
पिता वृक्ष से होते हैं
हम छांव में उनकी रहते हैं,
खुद धूप में जल कर भी
ठंडी छांव वो घर को देते हैं ।।
उम्मीद वही हैं, आस वही हैं
जीवन के पथ का विश्वास वहीं हैं ,
बूंद बूंद पसीना बहाकर
हर मुश्किल वो हंसकर सहते हैं ।
खुद धूप में जल कर भी
ठंडी छांव वो घर को देते हैं।
हमें फूल सा जीवन देकर
खुद कांटो पर चलते जाते हैं
छोटे-छोटे लम्हों से भी
खुशियां ढूंढ कर वो लाते हैं।
पहचान वही हैं, प्यार वही हैं
परिवार का अलंकार वही हैं,
ख्वाहिशों को हमारी उड़ान देकर
खुश वो हो लेते हैं ।
खुद धूप में जल कर भी
ठंडी छांव वह घर को देते हैं।।
✍️soumya Tiwari
© soumya.tiwari
पिता वृक्ष से होते हैं
हम छांव में उनकी रहते हैं,
खुद धूप में जल कर भी
ठंडी छांव वो घर को देते हैं ।।
उम्मीद वही हैं, आस वही हैं
जीवन के पथ का विश्वास वहीं हैं ,
बूंद बूंद पसीना बहाकर
हर मुश्किल वो हंसकर सहते हैं ।
खुद धूप में जल कर भी
ठंडी छांव वो घर को देते हैं।
हमें फूल सा जीवन देकर
खुद कांटो पर चलते जाते हैं
छोटे-छोटे लम्हों से भी
खुशियां ढूंढ कर वो लाते हैं।
पहचान वही हैं, प्यार वही हैं
परिवार का अलंकार वही हैं,
ख्वाहिशों को हमारी उड़ान देकर
खुश वो हो लेते हैं ।
खुद धूप में जल कर भी
ठंडी छांव वह घर को देते हैं।।
✍️soumya Tiwari
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