...

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हाँ आज़ाद होना चाहता हूं .....


मै, ये मन और ये तन साथ है
तू सांस सी धड़कन मे कैद है
सिमट कर ख़ुद मे खुद को आज़ाद करना चहता हूं
हाँ कैदी हूं मै आज़ाद होना चाहता हूं




क्षुब्ध मन के भाव को मै तोड़ता
सफ़र पुराना नया जिस्म का मोल सा
सांस का सौदा सांस से करता जिस्म को कोसता
अनुभवी रूह के जाने से मन मसोटता
आज़ाद रूह के खातिर खाख जिस्म होता
मुहब्बत की हद उस वक़्त तौलता
दिखाई देगा उस आलम मे, आकाश मे धुआं हर सू
फोड़ती खोपड़ी संग खवाइश-ए़ -जिस्म रूह मे विलय जब होगा
"****
बैकारारी को क़रार आएगा अब
सौदा सासों का ठहरेगा अब
देखा जिसे छुआ ना कभी
उससे गुज़र कर देखेंगे अब
उजाला नये जहां का होगा
कर्मों का हिसाब उस लोक मे होगा
चार दिन का जादूई खेल ये
खुदा ने पकड़ी कलाई नचाया रेल मे
दिखा अकसर, मूंदे आंख बस ख़ाब मे
अब आया है लेने कौन से लोक मे

कर्ज़ सारे उतर जाए ख्वाहिश है ये
वरना सौदे सारे रूबरू मिल कर कराएगा परलोक मे
मिले हमसे मिलाया ख़ुद से
उन्होने संभलना सिखाया भी.
काली रात मे होंसले से सहलया भी
वो खुदा मेरा साथ मेरे रहेगा ही
जिस्म का हूआ या ना हुआ रूह का हमेशा होगा ही
सौदा सांस का कर दे काफी है
जिस्मो के खेल से पीछा छूट जाएगा
निश्छल सा होकर फिर से स्वछंद हो जाएगा
फकीरा तंहा ही रहेगा और नक्षत्र हो जाअए


ये आते जाते बुलबुले हम से ही है
आइना टांगो गले मे सब हम से ही हैं