...

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मैं बचाकर रखूंगी तुम्हारी संदल देह की खुशबू
तुम्हें क्या लगता है
कि तुम्हारे जाने पर मैं उदासी चुनूँगी...
काव्य में विरह पिरोकर
मन के दुख को व्यक्त करूँगी..?
ये माना कि मेरे कमरे के फ़र्श पर
दरारों से उदासी रिसकर कमरे को
सीलन से भर देती है..,
खिड़कियों पर खिले चटख नारंगी और सफेद फूल
उदास और हताश होकर चुपचाप पड़े हैं,
ये बरामदे के झूलते हुए झीने परदे
तुम्हारे आने का इंतज़ार कर रहे हैं
या मेरी म्यूजिक प्ले लिस्ट
उदास गानों वाली होगी??
नहीं..तुम यहाँ गलत हो प्रिये!!
मैं तुम्हारे जाने पर चुनूँगी
फूलों का खुश होकर मुसकराना,
और मेरी म्यूजिक प्ले लिस्ट में होंगी
उम्मीद भरी ग़ज़लें,
मैं अपनी साड़ियों और दुप्पटों का रंग चुनूँगी
शोख..चटख... और गहरा,
कमरे की सीलन में भी बचाए रखूँगी
तुम्हारी संदल देह की खुशबू,
क्योंकि तुम्हारी वापिसी पर तुम्हें
सब यथावत मिले..
ये खिलखिलाते रंग.
हवा से हिलते..इंतज़ार करते परदे..
मेरे तन पर तुम्हारी पसंद के रंग..
और इस चेहरे पर तुम्हारी दी हुई
सूरज की किरणों की भाँति मुस्कान...!!

-सीमा शर्मा 'असीम'
Pic credit ;my gallery


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#यकहिन्दी #yqdidi
Pic credit ;my gallery

© ©सीमा शर्मा 'असीम'