बाकी रह गये..
हम तो हमीं थें तुम भी तुम्ही रहे बस फर्क इतना था हम राहें बदलते रह गये ।
मिली न मंजिल दोनों को फिर कभी हम इस छोर तुम उस छोर खड़े रह गये ।।
खुशियाँ गिरवी रख खरीदी थी हमने दो पल की जान-ओ-ज़िन्दगी अपनी ।
क्या कहें ग़म के ब्याज और बढ़ चले हम दर्द का असल ही चुकाते रह गये ।।
जो करते थें...
मिली न मंजिल दोनों को फिर कभी हम इस छोर तुम उस छोर खड़े रह गये ।।
खुशियाँ गिरवी रख खरीदी थी हमने दो पल की जान-ओ-ज़िन्दगी अपनी ।
क्या कहें ग़म के ब्याज और बढ़ चले हम दर्द का असल ही चुकाते रह गये ।।
जो करते थें...