...

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तब तक मैं.....
तब तक मैं खुद को सोने न दूंगा
जब तक न बदलूं हकीकत़ में सपनों को
जब तक न बदलूं खुशियों में गमों को
इन आंखों को फ़िर से अब रोने न दूंगा
तब तक मैं खुदको सोने न दूंगा

जब तक न पा लूं जो सोचा है मैने
तब तक देता हूं इन लोगो को कहने
यूं चुप करने से वो चुप न रहेंगे
काम है उनका कहना लोग कुछ तो कहेंगे
मगर मैं उनकी बातों पर ध्यान न दूंगा
जो करना है मुझको मैं वही करूंगा
और तब तक मैं खुदको सोने न दूंगा

ये मुश्क़िल है जीवन में गलती न हो
देखा भी नही ये जिंदगी फ़िर चलती न हो
गलती के बगैर सीख मिलेगी कैसे
और ठोकर के बिना जिंदगी संभलेगी कैसे
कितनी भी आ जायें ठोकरें जीवन में
मैं खुदको अब फिर से गिरने न दूंगा
तब तक मैं खुदको सोने न दूंगा

एक बात कहता हूं सुन प्रिय मेरी
यूं तो मुझ में है हर सांस तेरी
मगर जब तक न पा लूं उस मंजिल को मेरी
मैं खुदको यूं तेरा होने न दूंगा.....