...

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मेरे ख़्वाब
कुछ जुड़ने सा लगा था अभी
की अगले ही पल बिखरा पाया ख़ुद में
तेरे जाने की फ़र्क़ बस इतना सा होगा
पहले ख़ुद में तंहा था
अब तेरे साथ तंहा हूँगा
गिला तुझसे नहीं होगी कुछ भी
ये उम्मीद की जो रेखा है
अक्सर टूटते पाता हूँ मैं
रेत सा ही ठीक था अक्सर मैं
जुड़ा तो ठीक वरना बिखरा तो था ही मैं
कुछ अंजान सा लगने लगा है अब ये शहर
वो रास्ते वो मंज़िल
कुछ ख़्वाब बिकते थे उन में
दूर तलक फैला मिलेगा तुझे
मेरे ख़्वाबो के निशान
बस पहचान ना लेना
तकलीफ़ बहुत होगी मेरे ख़्वाबों को


© 𝕤𝕙𝕒𝕤𝕙𝕨𝕒𝕥 𝔻𝕨𝕚𝕧𝕖𝕕𝕚