...

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मखमली बदन.....
मखमली तेरे बदन की सिलवटें,
मेरे जिस्म पर अभी बाकी हैं!
मद भरी इन रातों में तू ही मयखाना मेरा,
तू ही मेरा साकी है!!

निगाहों से तेरी वो छलकता शराब,
मदमस्त जवानी तेरी, तेरा हुस्न लाजवाब!
बरबस ही खींचता है मुझ को तेरी तरफ,
कस्तूरी की तरह तेरा महकता शबाब!!
होठों की कलम से मैं लिखूँगा जिस पर,
तेरा जिस्म सनम सबकुछ बाकी है!!
मखमली तेरे बदन की सिलवटें,
मेरे जिस्म पर अभी बाकी हैं!!

चुमना चाहूँ तेरा अंग बार-बार,
लेकर यूँ अंगड़ाई ना कर तू बेकरार!
आ चुमूँ तेरे गालों को और छू लूँ होंठ लाल,
बाहों में तुझे भर के जी भर के करूँ प्यार!!
आ मदमस्त जवानी से तेरी खेलूँ जी भर के,
मिटा लूँ मेरे दिल की हसरतें जो बाकी हैं!!!

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© कुन्दन प्रीत