...

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ग़ज़ल

बे-ख़ुदी में जो चला तो ये नतीजा निकला
जिससे टकराया था मैं शख़्स वो अंधा निकला

अपनी क़िस्मत से शिकायत भी करूँ तो कैसे
जब भी मैं निकला समंदर से तो प्यासा निकला

मैं जहाँ आग बुझाने के लिए पहुँचा था
वो कोई बस्ती न थी आग का...