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"प्रेम"
"प्रेम-भाग दो"
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प्रेम बन्धता नहीं मोह वाली डोर से;
प्रेम तो मुक्ति है।

प्रेम को मतलब नहीं दुनिया के बेवजह के शोर से;
प्रेम तो खोजता है अपने प्रेमी की खुशियों की युक्ति है।

प्रेम को मतलब नहीं गुलाबी आंखों से;
प्रेम तो दिल की भक्ति है।

प्रेम का गहरा रिश्ता है हृदय से हृदय के मौन संवाद से;
प्रेम तो दिल की शक्ति है।

अरे! हो जाता है योवन निस्तेज;
लेकिन प्रेम कभी निस्तेज होता नहीं।

प्रेम तो वो पवित्र प्रकाशपुंज है;
जो कभी अपना प्रकाश खोता नहीं।

कुछ पाने की लालसा में जो किया जाए;
अजी!वो प्रेम होता नहीं।

जहां हर बात बोलकर समझायी जाए;
अजी!वहां प्रेम होता नहीं।

जो दो पल की दूरी से मिट जाए;
अजी!प्रेम ऐसा होता नहीं।

पारूल दुबे की लेखनी से✍️


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